वागीश शुक्ल जन्म: 9 जुलाई, 1946, बस्ती (उ.प्र.) । पूर्व प्रोफेसर, गणित विभाग, आई.आई.टी. दिल्ली । डॉक्टर वागीश शुक्ल ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से गणित में स्नातकोत्तर किया। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली में वर्षों तक प्राध्यापन। वागीश शुक्ल ने जहाँ एक वैज्ञानिक के रूप में उच्च गणित में मौलिक शोध किया, वहीं उन्होंने साहित्य की भी सराहना की। वे वर्तमान समय में हिन्दी-साहित्य के सबसे गहरे और तीकश्ष्ण सिद्धांसतार, आलोचक, निबंधकार एवं उपन्यासकार हैं । उनकी तीन पुस्तकें 'चंद्रकान्ता (सन्तति) का तिलिस्म', 'शहंशाह के कपड़े कहाँ हैं', और “छन्द-छन्द पर कुमकुम ' प्रकाशित हैं। 'शहंशाह के कपड़े कहाँ हैं' पुस्तक में अनेक मूलभूत प्रश्नों पर वैचारिक निबंध हैं। 'छन्द-छन्द पर कुमकुम" निराला की सुदीर्घ कविता 'राम की शक्ति पूजा' की अद्वितीय टीका है। आधुनिक समय में कोई ऐसा वैज्ञानिक उद्यम किसी अन्य भारतीय लेखक ने इस स्तर का नहीं किया है। यह टीका निराला की इस महत्त्वाकांक्षी कविता को भारतीय साहित्य की देशी और मार्गी परंपरा के परिवेश में अवस्थित कर उसकी अर्थ- समृद्धि को उद्धाटित करती है। वागीश शुक्ल ने गालिब के लगभग पूरे साहित्य की विस्तृत टीका और व्याख्या लिख रखी है, जो आनेवाले वर्षों में प्रकाशित होगी । वे पिछले कुछ वर्षों से एक सुदीर्घ उपन्यास लिखने में लगे हैं, जिसके कुछ अंश हिन्दी की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। हिन्दी, संस्कृत, फारसी और अंग्रेजी भाषा और साहित्य के गहरे और गम्भीर अध्येता वागीश शुक्ल साहित्य अकादेमी की परियोजना, भारतीय साहित्य का विश्व-कोश के मुख्य सम्पादक भी हैं । भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान से सेवा-निवृत्त होकर इन दिनों आप रोहिणी, दिल्ली में रहते हैं । Email: [email protected]