बाबूलाल सांखला पेशे से व्यवसायी हैं और इंजीनियर्स एंटरप्राइज नाम की कंपनी चलाते हैं। घर में पत्नी के अलावा तीन बच्चे हैं। बड़ी लड़की जो गोद ली हुई है, वह ताइवान में ताइपे विश्वविद्यालय में कार्यरत है। उससे छोटी बेटी पुणे में टेक महिंद्रा में कार्यरत है, जबकि छोटा बेटा आसाम राइफल में कक्षा बारहवीं में पढ़ाई कर रहा है। इसके साथ ही गरीब बच्चों और बेजुबान जानवरों के लिए 'दिवाकर फाउंडेशन' नाम की एक संस्था चलाते हैं। जिसने आठ बच्चों के लालन-पालन व शिक्षा की जिम्मेदारी ली है। लेखन को रुचि के हिसाब से लिया, पहली बार कक्षा छह में दोहे लिखने से शुरुआत की। कक्षा आठवीं में लेखक का लिखा नाटक स्कूल के मंच पर खेला गया और सराहा गया। लेखन 'सैनी बाबू' के नाम से करते हैं। कई मंचों पर कविता-पाठ करने का मौका मिला। कई कहानियाँ विभिन्न समाचार-पत्रों में आती रहती हैं। काव्यमेघ, छंदरथी, कलमकार जैसी उपाधियाँ विभिन्न मंचों से मिलीं। यह इनका पहला उपन्यास है।